पत्रकार हो, इसका मतलब कानून हाथ में लेना नहीं; सुप्रीम कोर्ट ने क्यों की तीखी टिप्पणी
पत्रकार हो, इसका मतलब कानून हाथ में लेना नहीं; सुप्रीम कोर्ट ने क्यों की तीखी टिप्पणी पत्रकार पर आरोप है कि बच्चों की खरीद फरोख्त के रैकेट का भंडाफोड़ करने के लिए एक स्टोरी की थी। लेकिन इस मामले में उस पर ही केस दर्ज हो गया। उस पर आरोप था कि उसने खबर को दबाने के लिए घूस मांगी थी।
पत्रकार या फिर रिपोर्टर होने का यह मतलब नहीं है कि आप कानून हाथ में ले लें। अदालत ने एक पत्रकार की ओर से दायर अर्जी पर सुनवाई करते हुए यह जवाब दिया। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट से अग्रिम जमानत खारिज होने के बाद पत्रकार ने उच्चतम न्यायालय का रुख किया है। पत्रकार पर आरोप है कि उसने नवजात बच्चों की खरीद फरोख्त के रैकेट का भंडाफोड़ करने के लिए एक स्टोरी की थी। लेकिन इस मामले में उस पर ही केस दर्ज हो गया। इसकी वजह उस पर लगा आरोप था कि उसने खबर को दबाने के लिए घूस की मांग की थी।
अदालत में पत्रकार की ओर से दावा किया गया कि वह अधिकृत संवाददाता है। उसने 26 जुलाई को राष्ट्रीय अखबार में रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जिसमें नवजात बच्चों की बिक्री के रैकेट का भंडाफोड़ किया गया था। इसी के चलते आरोपियों में से एक ने उसके खिलाफ काउंटर एफआईआर करा दी थी। इससे पहले शीर्ष न्यायालय ने याचिकाकर्ता और कुछ अन्य पत्रकारों को अंतरिम जमानत दे दी थी। हालांकि बुधवार को जस्टिस ए.एस बोपन्ना और जस्टिस एम.एम सुंदरेश की बेंच ने कहा कि याची पत्रकार अंतरिम बेल का हकदार नहीं है। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता पर पहले से ही कई मामले दर्ज हैं।
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि याची को हमने 28 नवंबर, 2022 को भी बेल दी थी। इस बार तो राज्य सरकार की ओर से भी काउंटर स्टेटमेंट दिया गया है। हालांकि इस बार हम आरोपों पर नहीं जा रहे हैं, लेकिन याचिकाकर्ता पर कई और मामले भी हैं। हम नहीं मानते कि अब उन्हें अंतरिम जमानत दी जानी चाहिए। सरकार के वकील का कहना है कि मामले में जांच पूरी हो चुकी है। ऐसे में जांच अधिकारी ही तय कर सकते हैं कि याची पत्रकार को हिरासत में लिए जाने की जरूरत है या नहीं।
जज बोले- आज के दौर में कुछ भी भरोसे लायक नहीं रहा
पत्रकार के वकील ने अदालत में दलील दी, ‘आरोप लगाए जा रहे हैं कि 50 लाख रुपयों की मांग की गई थी और सिर्फ 50 हजार रुपये ही दिए गए। यह ऐसा आरोप है, जिस पर यकीन ही नहीं किया जा सकता।’ इस पर जस्टिस बोपन्ना ने कहा कि आज के दौर में कुछ भी भरोसेमंद या फिर अविश्वसनीय नहीं है। इससे पहले याची की अंतरिम जमानत की अर्जी को मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने भी खारिज कर दिया था।