पिता सारी जमीन एक ही औलाद के नाम करवा सकता है या नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने बताया

पिता सारी जमीन एक ही औलाद के नाम करवा सकता है या नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने बताया

Supreme Court Decision : पिता सारी जमीन एक ही औलाद के नाम करवा सकता है या नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने बताया
property dispute : क्या पिता अपनी सारी प्रॉपर्टी क्या एक ही औलाद के नाम करवा सकता है या नहीं, इसको लेकर आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने ये अहम फैसला सुना दिया है , आइये जानते हैं

सुप्रीम कोर्ट वसीयतों पर स्थिति साफ करते हुए एक फैसले में कहा है कि जब वसीयत में संपत्ति के पूरे अधिकार किसी एक व्यक्ति के पक्ष में कर दिए गए हों, तो उसी वसीयत में उसी सपंत्ति में अन्य लोगों को दिए

सुप्रीम कोर्ट वसीयतों पर स्थिति साफ करते हुए एक फैसले में कहा है कि जब वसीयत में संपत्ति के पूरे अधिकार किसी एक व्यक्ति के पक्ष में कर दिए गए हों, तो उसी वसीयत में उसी सपंत्ति में अन्य लोगों को दिए गए हिस्सों का कोई अर्थ नहीं है।

अपनी वसीयत में वसीयतकर्ता ने पूरी संपत्ति अपनी विधवा तथा बड़ी पुत्री के नाम कर दी थी। लेकिन कोर्ट में यह तर्क दिया गया कि वसीयत में सीमिति अधिकार ही दिए गए हैं। जबकि इसे संपूर्ण रूप में पढ़कर वसीयतकर्ता के इरादे को समझना चाहिए जिससे कि पौत्र सड़क पर न आ जाएं। इस तर्क को सुनवाई अदालत और इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी तव्वजो दी और कहा और वसीयत के दूसरे हिस्से में जिसमें पुत्री की मौत की बाद हिस्सा देने की बात है, उसे भी साथ में पढ़ना चाहिए।

मगर सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस आरके अग्रवाल और आरएफ नारीमन की पीठ ने इस फैसले को रद्द कर दिया और कहा कि रामकिशोरलाल के मामले में इस बारे में व्यवस्था दी जा चुकी है। पीठ ने कहा कि वसीयत के दो हिस्सों को जहां तक संभव हो, सामन्जस्य के साथ पढ़ना चाहिए। जब यह संभव न हो, जैसे संपत्ति का पूर्ण अधिकार स्पष्ट और साफ शब्दों में दिया गया हो और लेकिन दूसरे हिस्से के शब्द पहले हिस्से का विरोध कर रहे हों तो, बाद वाले हिस्से को व्यर्थ माना जाना चाहिए। पीठ ने कहा कि मौजूदा वसीयत को पढ़ने से साफ है इसमें सपंत्ति के इस्तोमल को सीमित करने संबंधी कोई शब्द नहीं है। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि वसीयत पत्नी और बेटी के सीमित अधिकारों के लिए बनाई गई है। कोर्ट ने कहा कि बेटी और पत्नी के लिए की गई वसीयत अपने आप में पूर्ण है।

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